नाना, नमस्ते

नाना, नमस्ते।
कैसे हो? दर्द ज़्यादा होता है अब?

सब लोग यहाँ उदास बैठे हैं,
शायद इसलिए कह नहीं पा रहे, पर...
अब तो आप मज़े करो—
जितने भी दिन, महीने या साल बचे हैं,
उन्हें अपने अधूरे ख़्वाब पूरे करने में बिताओ।

कोई जगह जहाँ जाने का मन हो? जाओ।
कोई बात जो कहनी हो? कह दो।
बचपन का कोई अधूरा प्यार, नानी के अलावा—
अगर मिलने का मन करे, तो मिल लेना।
पुराने दोस्त जो अभी भी ज़िंदा हैं,
उनसे भी दो बातें कर लेना।

और हाँ—
अगर अंतिम समय में पता चला कि कुछ अधूरा रह गया,
तो सच कहूँ, हम आपको माफ़ नहीं करेंगे।
आप तो चले जाओगे भगवान जी के पास,
पर हमें यहाँ छोड़ जाओगे... रोते-रोते।

और हाँ, इन बच्चों को भी समझा देना:
"जैसे भी जाएँगे, अच्छे से जाएँगे।
खुशी-खुशी जाएँगे।
और तुम लोग ज़्यादा उदास हुए न,
तो देखना, डराने भी आएँगे!"

बाकी, इस क़ीमती समय का आनंद लीजिए—
हवा का सनसनाहट,
सूरज की धूप की गर्माहट,
घर की चहल-पहल,
गुलाब की मीठी खुशबू,
कड़क अदरक वाली चाय का स्वाद,
और इस चलते हुए समय की खूबसूरती।

आख़िर में—
हर समय अच्छा ही होता है, ना?
बस नज़रिए की ही तो बात होती है ना?
मौत के आसपास भी कितने प्यारे पल होते हैं, ना?
हाँ, उदास... पर प्यारे भी।
क्योंकि ग़म की भी तो अपनी ही खूबसूरती होती है, ना?

अगर कुछ ज़्यादा बोल दिया,
या उल्टी-सीधी बात कह दी,
तो माफ़ कर देना, नाना।
अभी तो छोटा सा बच्चा ही हूँ यार, माफ़ कर दो।
A.V

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